नज़र नवाज़ नज़रों में ज़ी नहीं लगता; फ़िज़ा गई तो बहारों में ज़ी नहीं लगता; ना पूछ मुझसे तेरे ग़म में क्या गुजरती है; यही कहूंगा हज़ारों में ज़ी नहीं लगता। |
किसी ने सच कहा है: जब दीवारों में दरार पड़ती है तो दीवारें गिर जाती हैं, लेकिन जब रिश्तों में दरार पड़ती है तो कभी ना गिरने वाली दीवारें बन जाती हैं। |
खामोशियों की भी धीमी सी आवाज़ है; तन्हाईयों में भी एक गहरा राज़ है; मिलते नही हैं सबको अच्छे दोस्त यहाँ; आप जो मिले हो हमें खुद पर नाज़ है। |
मुझको फिर वो सुनहरा नज़ारा मिल गया; नज़रों को जो दीदार तुम्हारा मिल गया; और किसी चीज़ की तमन्ना क्यों करूँ; जब मुझे तेरी बाहों में सहारा मिल गया! शुक्रिया! |
मैंने सुना था प्यार ख़ुदा की मूरत होता है, पर यह भूल गया था कि वो धरती पे पत्थर के रूप में है। |
बेवफ़ा से प्यार नहीं होता; मरने के बाद इंतज़ार नहीं होता; दोस्ती देख कर करना मेरे दोस्त; हर दोस्त हमारी तरह वफ़ादार नहीं होता। |
क्यों मुश्किलों में साथ देते हैं, दोस्त; क्यों ग़म को बाँट लेते हैं दोस्त; ना रिश्ता ख़ून से ना रिवाज़ से बंधा; फ़िर भी ज़िंदगी भर साथ देते हैं, दोस्त। |
किस तरह से शुक्रिया कहें आपको; ज़मीन से उठा कर दिल में बिठा लिया; नज़रों में समां कर, पलकों पे सजा दिया; इतना प्यार दिया आपने हमको, कि मेरे बिखरे शब्दों को कविता बना दिया! शुक्रिया! |
गलतियों से जुदा तु भी नहीं, मैं भी नहीं; दोनों इंसान हैं, ख़ुदा तु भी नहीं, मैं भी नहीं; गलतफहमियों ने कर दी दोनों में पैदा दूरियां; वरना फितरत का बुरा तु भी नहीं था, मैं भी नहीं! |
तेरी दोस्ती हम इस तरह निभाएँगे; तुम रोज़ खफा होना हम रोज़ मनाएँगे; पर तुम मान जाना मनाने से; वरना ये भीगी पलकें ले के हम कहाँ जाएँगे। |