
को काहू को मित्र नहीं, शत्रु काहू को नाय;
अपने ही गुण दोष से, शत्रु मित्र बन जाय।
संसार का एक ही नियम है, आप जिसके लिए उपयोगी हैं वो आप को मित्र मानेगा। जिस को आप के कारण नुक्सान हो रहा होगा, वो आप का शत्रु हो जायेगा।

मुझे इतना नीचे भी मत गिराना हे ईश्वर! कि मैं पुकारूँ और तू सुन ना पाये;
और इतना ऊँचा भी मत उठाना कि तू पुकारे और मैं सुन ना पाऊं।

ऐ खुदा तू भी अपना जलवा दिखा दे;
हर किसी की ज़िंदगी तू अपने नूर से सज़ा दे;
जो हैं बैठे खामोश से इस समय;
उनकी ज़िंदगी भी तू अपने कर्म से रौशन कर दे।

खूबसूरत तालमेल है मेरे और उसके बीच में;
ज्यादा मैं माँगता नहीं, कम वो देता नहीं।

सब का मालिक वो एक कुल परमात्मा है,
उस का अपना कोई नाम नहीं है पर सारे नाम उसकी के हैं,
उसको किसी भी नाम से पुकारो वो ज़रूर जवाब देता है।
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। इसलिए जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल।

शिवाय विष्णु रुपाय
शिव रुपाय विष्णवे
शिवस्य हृदयं विष्णुः
विष्णोश्च हृदयं शिव:
मैं आँधियों से क्यों डरूँ जब मेरे अंदर ही तूफ़ान है;
मैं मंदिर मस्जिद क्यों जाऊं जब मेरे अंदर ही भगवान है।

हज़ारों ऐब हैं मुझमे, नहीं कोई हुनर बेशक;
मेरी खामी को तू मेरी खूबी में तब्दील कर देना;
मेरी हस्ती है एक खारे समंदर सी मेरे दाता;
तू अपनी रहमतों से इसको मीठी झील कर देना।
जब हम कठिन परिस्थितियों से गुज़र रहे होते हैं और प्रभु को मौन पाते हैं तो;
याद रखना कि परीक्षा के दौरान शिक्षक हमेशा मौन रहते हैं।