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ज़रूर कोई तो लिखता होगा कागज़ और पत्थर का भी नसीब;
वरना यह मुमकिन नहीं कि कोई पत्थर ठोकर खाए और कोई पत्थर भगवान बन जाये,
और कोई कागज़ रद्दी और कोई कागज़ गीता और कुरान बन जाये।

बहुत सुन्दर शब्द जो एक गुरुद्वारे के दरवाज़े पर लिखे थे :
सेवा करनी है तो, घड़ी मत देखो !
लंगर छ्कना है तो, स्वाद मत देखो !
सत्संग सुनाना है तो, जगह मत देखो !
बिनती करनी है तो, स्वार्थ मत देखो !
समर्पण करना है तो, खर्चा मत देखो !
रहमत देखनी है तो, जरूरत मत देखो !!

बिना माँगें इतना दिया दामन में मेरे समाया नही;
जितना दिया प्रभु ने मुझको उतनी तो मेरी औकात नही;
यह तो करम है उनका वरना मुझ में तो ऐसी बात नही।

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"दु:ख" और "तकलीफ" भगवान की बनाई हुई वह प्रयोगशाला है,
जहां आपकी काबलियत और आत्मविश्वास को परखा जाता है।

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गोपाल सहारा तेरा है,
नंदलाल सहारा तेरा है,
तू मेरा है मैं तेरा हूँ,
मेरा और सहारा कोई नहीं,
तू माखन चुराने वाला है,
तू चित को चुराने वाला है,
तू गौयें चराने वाला है,
तू बंसी बजाने वाला है,
तू रास रचाने वाला है।
तेरे बिन मेरा और सहारा कोई नहीं।

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वो अक्सर मुझे अपने दर पर बुलाते हैं,
कभी चुपके से अपने दर्शन दे जाते हैं,
कैसे करूँ शुक्राना उस रब का,
जो माँगने से पहले झोलियाँ भर जाते हैं।

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जरूरी नहीं कि लब पर हर समय परमात्मा का नाम आये,
वो समय भी भक्ति का होता है जब इंसान इंसान के काम आये।

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जो केवल अपना भला चाहता है वो दुर्योधन है, जो अपनों का भला चाहता है वो युधिष्ठिर है, और जो सबका भला चाहता है वो श्री कृष्ण हैं। कर्म के साथ साथ भावनायें भी महत्त्व रखती हैं।

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रात को मैं उठ न सका "साँवरे" दरवाजे पर किसी की दस्तक से,
सुबह होते ही बहुत रोई मैं, "कन्हैया" तेरे पैरों के निशान देख कर।

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किसी को भी ना तूँ सतगुरु उदास रखना;
सबको अपने चरणो के दाता पास रखना;
गम ना आयेँ किसी को भी मेरे सतगुरु,
तूँ नजरे-करम सब पर ही खास रखना।

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