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खुशी का पहला उपाय - पिछली बातों पर बहुत अधिक विचार करने से बचें।

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प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज़ नहीं है यह आप ही कर्मों से आती है।

बुरे व्यक्ति पर क्रोध करने से पूर्व अपने पर ही क्रोध करना चाहिए।

प्रसन्नता और नैतिक कर्तव्य एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं।

प्रसन्नता बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती, यह हमारे मानसिक रवैया से संचालित होती है।

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जब आप अपने मित्रों का चयन करते हैं तो चरित्र के स्थान पर व्यक्तित्व को न चुनें।

खुश रहने का मतलब यह नहीं कि सब कुछ उत्तम है। इसका मतलब है कि आपने कमियों से ऊपर उठने का निर्णय कर लिया है।

दोस्ती की मिठास में हास्य और खुशियों का बांटना होना चाहिए। क्योंकि छोटी-छोटी चीजों की ओस में दिल अपनी सुबह खोज लेता है और तरोताज़ा हो जाता है।

प्रसन्त्ता ऐसी घटनाओ की निरंतरता है जिनका हम विरोध नहीं करते।

जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं।

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