धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो।

एक अन्यायपूर्ण समाज में धनी और सम्मानित होना एक अपमान है।

​ऐसा पैसा जो बहुत तकलीफ के बाद, अपना धर्म-ईमान छोड़ने ​के बाद, दुश्मनों की चापलूसी से​ या उनकी सत्ता स्वीकारने से मिले, उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।

हर एक को पैसों की तरफ नीचे देखना चाहिए लेकिन उसके लिए अपनी दृष्टि कभी नहीं खोनी चाहिए।

दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।

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धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और न ही मिलेगी। जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है, वह उससे कहीं अधिक चाहता है।

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धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, और कम पड़ने पर भी अपना सिर ऊंचा बनाए रखो।

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धन मुझे पैसा पसंद नहीं है, लेकिन यह मेरी नसों को शांति प्रदान करता है।

​तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, ​यह अपने ​आप ​से पूछो​,​ उस कहानी से बहुत सीखोगे।

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धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।

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