आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है।

​प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।

धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं।

​पूँजी मृत श्रम है, जो पिशाच की तरह केवल जीवित श्रमिकों का खून चूस कर जिंदा रहता है, और जितना अधिक ये जिंदा रहता है उतना ही अधिक श्रमिकों को चूसता है।

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​धन को एक महान दिलासा देने वाला जाना जाता है।

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पहली दौलत सेहत है।

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जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जीना और लिखना नहीं चाहिए।

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पैसे की कमी सभी समस्याओं की जड़ है।

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कंजूस मात्र एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्कसंगत कंजूस है।

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​पैसे के मामले में सबका मजहब एक है।

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