इतना क्यों सिखाए जा रही हो ज़िन्दगी;
हमें कौन सी यहाँ सदियाँ गुज़ारनी हैं!
झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी;
रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ!
ज़िंदगी निकली मुसलसल इम्तिहाँ-दर-इम्तिहाँ;
ज़िंदगी को दास्ताँ ही दास्ताँ समझा था मैं!
Meaning:
मुसलसल - लगातार, निरंतर
यूँ चेहरे पर उदासी ना ओढिये साहब;
वक़्त ज़रूर तकलीफ का है लेकिन कटेगा मुस्कुराने से ही।
ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है;
ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है;
अजब सी कशमकश है, रोज़ जीने, रोज़ मरने में;
मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है।
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार;
आँखों भर आकाश है, बाहों भर संसार।
तुम्हारी एक निगाह से कतल होते हैं लोग फ़राज़;
एक नज़र हम को भी देख लो कि तुम बिन ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती।
आँखों में पानी रखो, होंठो पे चिंगारी रखो;
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो;
राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें;
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो।
वो दरिया ही नहीं जिसमे नहीं रवानी;
जब जोश ही नहीं तो फिर किस काम की है जवानी।
'सुकून' की बात मत कर ऐ ग़ालिब;
बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता।



