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तेरा ज़िक्र मेरी हर बात मैं है;
तुम पास नहीं पर साथ में है;
मैं तुझसे बिछड़ कर जाऊं कहाँ;
तेरा इश्क़ तो मेरी जात में है!

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मुहब्बत का खुमार उतरा तो तब साबित हुआ;
वो जो मंज़िल का रास्ता था, बे-मकसद सफर निकला!

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मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब;
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना;
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते `ग़ालिब`;
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना!

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तुम चाहो तो ले लो मेरी रूह की तलाशी;
यकीन मानो, कुछ भी नहीं बचा मुझमे तुम्हारी मोहब्बत के सिवा!

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फिरते है मीर अब कहाँ ,कोई पूछता नहीं;
इस आशिक़ी में इज़्ज़त सादात भी गयी

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ये शायरीयाँ कुछ और नहीं बेइंतहा इश्क है;
तड़प उनकी उठती है और "दर्द" लफ्जों में उतर आता है!

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तेरे साथ का मतलब जो भी हो;
तेरे बाद का मतलब कुछ भी नहीं!

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पूरा दुःख और आधा चाँद हिजर की शब और ऐसा चाँद,
इतने घने बादल के पीछे कितना तनहा होगा चाँद;
मेरी करवट पर जाग उठे नींद का कितना कच्चा चाँद,
सेहरा सेहरा भटक रहा है अपने इश्क़ में सच्चा चाँद!

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एक मुट्ठी इश्क़ बिखेर दो इस ज़मीन पे;
बारिश का मौसम है शायद मोहब्बत पनप जाए।

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एक मुट्ठी इश्क़ बिखेर दो इस ज़मीन पे;
बारिश का मौसम है शायद मोहब्बत पनप जाए।

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