शायद किसी लकीर में मिल जाऊं;
मुझे कुछ क़रीब से देखने दे हथेली तेरी!
ऐसे माहौल में दवा क्या है दुआ क्या है;
जहां कातिल ही खुद पूछे कि हुआ क्या है!
आ तेरी रूह को अपने प्यार के रंगों से सराबोर कर दूँ,
महकने लगेंगी साँसें तेरी, ऐसी सुगंध बफाओं की भर दूँ।
इश्क़ की होलियां खेलनी छोड़ दी है हमने,
वरना हर चेहरे पे रंग सिर्फ़ हमारा ही होता!
कौन सा रंग लगाऊं तेरे चेहरे पर,
कि मेरा मन तो पहले ही तेरे रंग में रंग चुका है!
मेरी आँखों में यहीं हद से ज्यादा बेशुमार हैं,
तेरा ही इश्क़, तेरा ही दर्द, तेरा ही इंतज़ार हैं!
मेरी नीम सी ज़िन्दगी शहद कर दे;
कोई मुझे इतना चाहे की हद कर दे!
मनाए दुनिया इक ही दिन जश्न मोहब्बत का;
मेरी तो हर साँस तेरे इश्क से ही महकती है!
इश्क उन्हें ही गुनाह लगता है साहेब,
जिनके इरादों मे मिलावट होती है।
तेरे पास में बैठना भी इबादत;
तुझे दूर से देखना भी इबादत;
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा;
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत!



