
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है; बेवफ़ाई कभी कभी करना!

ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को; वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता! *बहर-ए-बे-कराँ: बिना किनारे का समुद्र

हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यों हो; ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं!

ये पानी ख़ामोशी से बह रहा है;
इसे देखें कि इस में डूब जाएँ!

कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है; कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ!

शायरी झूठ सही इश्क़ फ़साना ही सही; ज़िंदा रहने के लिए कोई बहाना ही सही!

मानी हैं मैंने सैकड़ों बातें तमाम उम्र; आज आप एक बात मेरी मान जाइए!

ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई; हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई!

न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा; दुआ भी काम न आए कोई दवा न लगे!

लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए; हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो!