
करते हैं मेरी कमियों का बयान इस तरह;
लोग अपने किरदार में फरिश्ते हो जैसे!

मुझे परखने में पूरी जिंदगी लगा दी उसने:
काश कुछ वक्त समझने में लगाया होता!

झूठ बोलने का रियाज़ करता हूँ, सुबह और शाम मैं,
सच बोलने की अदा ने हमसे, कई अजीज़ यार छीन लिये!

कोने में सिमटकर सोना चाहता हूँ, जमाने से छिपकर रोना चाहता हूँ;
तुम्हें भुलाने की ऐसी जिद पकड़ी है, जबरदस्ती किसी का होना चाहता हूँ!

मेरे ठोकरें खाने से भी कुछ लोगों को जलन है;
कहतें हैं यूँ तो ये शख्स, तजुर्बे में आगे निकल जाएगा!

काश तुम आकर संभाल लो मुझे;
थोड़ा सा रह गया हूं मैं इस साल की तरह!

बहुत सारी उलझनों का जवाब यही है;
मैं अपनी जगह सही हूँ, और वो अपनी जगह सही है!

तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी;
तेरा मुड़-मुड़कर देखना हमें बदनाम कर गया।

रहते हैं आसपास ही लेकिन साथ नहीं होते;
कुछ लोग जलते हैं मुझसे बस ख़ाक नहीं होते!

ज़िन्दगी सब्र के अलावा कुछ भी नहीं,
मैंने हर शख्स को यहाँ खुशियों का इंतज़ार करते देखा है!