
नाराज़गी भी एक खूबसूरत रिश्ता है;
जिससे होती है, वह व्यक्ति दिल और दिमाग, दोनों में रहता है।

कई जन्मों से तेरे पीछे चलते रहे हैं हम,
होते हुए तरल भी पिघलते रहे हैं हम,
तू हो के व्यस्त भूल गया वादे हजार कर के,
तेरी बेरुखी की आग में जलते रहे हैं हम।

ये व्यक्तित्व की गरिमा है, कि फूल कुछ नही कहते,
वरना कभी ,कांटों को, मसलकर दिखाईये!

सच्चाई के इस जंग मे, कभी झूठे भी जीत जाते है;
समय अपना अच्छा न हो तो, कभी अपने भी बिक जाते है!

मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब;
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना,
मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते `ग़ालिब`;
अर्श से इधर होता काश के माकन अपना!

किमतें गिर गई मोहब्बत की,
चलो कोई दूसरा कारोबार करते है!

जुबाँ न भी बोले तो, मुश्किल नहीं;
फिक्र तब होती है जब, खामोशी भी बोलना छोड़ दें|

मसरूफ़ हैं यहाँ लोग, दूसरों की कहानियाँ जानने में,
इतनी शिद्दत से ख़ुद को अगर पढ़ते, तो ख़ुद़ा हो जाते|

अच्छा है तुम्हारा दिल जो खवाबोे में मान जाता है;
एक कम्बक्त हमारा दिल है की रूबरू होने को तड़पता है।

मुझको पढ़ पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं;
मै वो किताब हूँ जिसमे शब्दों की जगह जज्बात लिखे है।