
मेरी आँखों में आँसू नहीं बस कुछ नमी है,
वजह तू नहीं बस तेरी ये कमी है।

दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा,
वो जो उदास बैठे हैं, नवाब थे कभी।

नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं,
कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता।

मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की,
वरना हम कभी महक तो कभी बहक क्यों जाते।

हद से बढ़ जाये ताल्लुक तो गम मिलते हैं,
हम इसी वास्ते अब हर शख्स से कम मिलते हैं।
मेरी खामोशी से किसी को कोई फर्क नही पडता,
और शिकायत में दो लफ़्ज कह दूं तो वो चुभ जाते हैं।
खूबसूरत क्या कह दिया उनको, वो हमको छोड़कर शीशे के हो गए;
तराशा नहीं था तो पत्थर थे, जब तराश दिया तो खुदा हो गए।
गिला शिकवा ही कर डालो कि कुछ वक्त कट जाए,
लबों पे आपके ये खामोशी अच्छी नहीं लगती।
आज धुन्ध बहुत है मेरे शहर में,
अपने दिखते नहीं, और जो दिखते है वो अपने नहीं।

अब ना कोई शिकवा, ना गिला, ना कोई मलाल रहा,
सितम तेरे भी बे-हिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा।