मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़;
गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो।

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उन्हें एहसास हुआ है इश्क़ का हमें रुलाने के बाद;
अब हम पर प्यार आया है दूर चले जाने के बाद;
क्या बताएं किस कदर बेवफ़ा है यह दुनिया;
यहाँ लोग भूल जाते ही किसी को दफनाने के बाद।

मोहब्बत का मेरा यह सफर आख़िरी है;
ये कागज, ये कलम, ये गजल आख़िरी है;
फिर ना मिलेंगे अब तुमसे हम कभी;
क्योंकि तेरे दर्द का अब ये सितम आख़िरी है।

ना जाने कौन सी बात पर वो रूठ गयी है;
मेरी सहने की हदें भी अब टूट गयी हैं;
कहती थी जो कि कभी नहीं रूठेगी मुझसे;
आज वो अपनी ही बातें भूल गयी है।

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मुद्दत से कोई शख्स रुलाने नहीं आया;
जलती हुई आँखों को बुझाने नहीं आया;
जो कहता था कि रहेंगे उम्र भर साथ तेरे;
अब रूठे हैं तो कोई मनाने नहीं आया।

तुम ने चाहा ही नहीं हालात बदल सकते थे;
तेरे आाँसू मेरी आँखों से निकल सकते थे;
तुम तो ठहरे रहे झील के पानी की तरह;
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे।

दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं;
जनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैं;
हम सजाते हैं महफ़िल हर शाम;
एक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं!

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आग से सीख लिया हम ने यह करीना भी;
बुझ भी जाना पर बड़ी देर तक सुलगते रहना;
जाने किस उम्र में जाएगी यह आदत अपनी;
रूठना उससे और औरों से उलझते रहना।

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तुम्हें ही कहाँ फ़ुरसत थी, मेरे पास आने की;
मैने तो बहुत इत्तला की, अपने गुज़र जाने की।

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समझा न कोई हमारे दिल की बात को;
दर्द दुनिया ने बिना सोचे ही दे दिया;
जो सह गए हर दर्द को हम चुपके से;
तो हमको ही पत्थर दिल कह दिया।

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