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दानिस्ता हम ने अपने सभी गम छुपा लिए;
पूछा किसी ने हाल तो बस मुस्कुरा दिए!

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सजा रहेगा अँधेरों से ही खंडर मेरा;
इक एक कर के हुआ ख़त्म अब सफ़र मेरा!

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मुस्तकिल अब बुझा बुझा सा है;
आखिर इस दिल को ये हुआ क्या है!

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मुझे दिल कि ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता;
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता!

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न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा;
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं!

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दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो;
इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो!

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जो दिल पर बोझ है यारब ज़रा भी कम नहीं होता;
ज़माना ग़म तो देता है शरीक-ए-ग़म नहीं होता!

तेरे ही किस्से तेरी ही कहानियाँ मिलेंगी मुझ में;
न जाने किस-किस अदा से तू आबाद है मुझ में!

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मैं अपनों को मिलने से कतराता हूँ;
एक और नए धोखे से घबराता हूँ!

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एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी;
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया!

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