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फलक देता है जिसको ऐश उसको गम भी देता है;
जहाँ बजते हैं नक्कारे, वहीं मातम भी होते हैं।

फलक - आकाश, आसमान, अर्

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वो शायर होते हैं जो शायरी करते हैं;
हम तो बदनाम से लोग हैं, बस दर्द लिखते हैं।

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जिंदगी इतना दर्द नहीं देती कि मरने को जी चाहे;
बस लोग इतने दर्द दे जाते हैं कि, जीने को दिल नहीं करता।

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आदत बदल सी गई है वक़्त काटने की;
हिम्मत ही नहीं होती अपना दर्द बांटने की।

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आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना;
कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना!

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मत पूछ कि मेरा कारोबार क्या है;
मोहब्बत की छोटी सी दुकान है नफरत के बाजार में!

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बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का;
जो चीरा तो इक क़तरा-ए-ख़ूँ न निकला!

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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यों;
रोयेंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यों।

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जब खाक ही होना था मुझको तो खाक-ए-रह-ए-सहरा होता,
इक कोशिश-ए-पैहम तो होती, उड़ता होता, गिरता होता।

1. खाक - धूल, रंज, गर्द, मिट्टी जमीन
2. खाक-ए-रह-ए-सहरा - मरूस्थल या रेगिस्तान के रास्ते की धूल

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अब क्या करूँ तलाश किसी कारवां को मैं,
गुम हो गया हूँ पाके तेरे आस्ताँ को मैं।

1. आस्ताँ - चौखट, दहलीज, ड्योढ़ी

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