कैसे छोड़ दूँ आखिर, तुमसे मोहब्बत करना,
तुम किस्मत में ना सही, दिल में तो हो!

बेजुबां महफिल में शोर होने लगा;
ना जाने कौन पढ़ गया खामोशी मेरी!

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संगदिलों की दुनिया है ये, यहाँ सुनता नहीं फ़रियाद कोई;
यहाँ हँसते हैं लोग तभी, जब होता है बरबाद कोई!

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इस दुनिया मेँ अजनबी रहना ही ठीक है;
लोग बहुत तकलीफ देते है अक्सर अपना बना कर!

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मत पूछो की कैसा हूँ मैं;
कभी भूल ना पाओगे वैसा हूँ मैं!

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फिर नहीं बसते वो दिल जो एक बार उजड़ जाते है;
कब्रें जितनी भी सजा लो पर कोई ज़िंदा नहीं होता!

वो शमां की महफिल ही क्या, जिसमें दिल खाक ना हो;
मजा तो तब है चाहत का, जब दिल तो जले पर राख ना हो!

ज़िंदा रहने की बस, अब ये तरकीब निकाली है;
ज़िंदा होने की खबर, बस सब से छुपा ली है!

तुम्हारा दबदबा ख़ाली तुम्हारी ज़िंदगी तक है;
किसी की क़ब्र के अन्दर ज़मींदारी नही चलती!

गुज़रते लम्हों में सदियाँ तलाश करतl हूँ;
ये मेरी प्यास है,नदियाँ तलाश करतl हूँ;
यहाँ लोग गिनाते है खूबियां अपनी;
मैं अपने आप में खामियां तलाश करतl हूँ!

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