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रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अना;
रोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है!

*अना: मैं, अहम

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मरते हैं आरज़ू में मरने की;
मौत आती है पर नहीं आती!

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शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए;
हम उसी आग में गुम-नाम से जल जाते हैं!

*शमा: मोमबत्ती

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किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती;
है यही एक ख़राबी मेरी तन्हाई की!

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ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे;
सो जाए भी तो पहर दो पहर को जाता है!

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अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को;
मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं!

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इज़हार-ए-हाल का भी ज़रिया नहीं रहा;
दिल इतना जल गया है कि आँखों में नम नहीं!

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एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं;
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने!

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मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र';
साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं!

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तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी;
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे!

* तल्ख़ी-ए-मय: bitterness of the wine

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