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​रात चुप चाप है पर चाँद खामोश नहीं;
कैसे कह दूँ कि आज फिर होश नहीं;
ऐसा डूबा हूँ मैं तुम्हारी आँखों में;
हाथ में जाम है पर पीने का होश नहीं।

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तोहफे में मत गुलाब लेकर आना;
मेरी क़ब्र पर मत चिराग लेकर आना;
बहुत प्यासा हूँ अरसों से मैं;
जब भी आना शराब लेकर आना।

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मेरी तबाही का इल्जाम अब शराब पर है;
करता भी क्या और तुम पर जो आ रही थी बात।

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लानत है ऐसे पीने पर हज़ार बार;
दो घूंट पीकर ठेके पर ही लंबे पसर गये।

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हर तरफ खामोशी का साया है;
जिसे चाहते थे हम वो अब पराया है;
गिर पङे है हम मोहब्बत की भूख से;
और लोग कहते है कि पीकर आया है।

शराब पी के रात को हम उनको भुलाने लगे;
शराब मे ग़म को मिलाने लगे;
ये शराब भी बेवफा निकली यारो;
नशे मे तो वो और भी याद आने लगे।

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पी के रात को हम उनको भूलने लगे;
शराब में गम को मिलाने लगे;
दारु भी बेवफ़ा निकली यारों;
नशे में तो वो भी याद आने लगे।

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ग़म इस कदर बढे कि घबरा कर पी गया;
इस दिल की बेबसी पर तरस खा कर पी गया;
ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना;
मैं आज सब जहां को ठुकरा कर पी गया!

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तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है;
खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है;
फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ दर्दे दिलवालों;
यहाँ दर्द-ऐ-दिल की दावा पिलाई जाती है!

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मैं नहीं इतना घाफिल कि अपने चाहने वालों को भूल जाऊं;
पीता ज़रूर हूँ लेकिन थोड़ी देर यादों को सुलाने के लिए!

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