
नशा था ज़िंदगी का शराबों से तेज़-तर; हम गिर पड़े तो मौत उठा ले गई हमें!

साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद; मुझ को तेरी निग़ाह का इल्ज़ाम चाहिए!

लोग कहते हैं रात बीत चुकी; मुझ को समझाओ, मैं शराबी हूँ!

हम इंतज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं; पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं!

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो; नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें!

न तुम होश में हो न हम होश में हैं; चलो मय-कदे में वहीं बात होगी!

अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में; जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में! * मयस्सर: Available

कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं; जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला!

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए;
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए!
*अब्र- मेघ, बादल

तेरी बेवफ़ाई को मैंने जाम कर दिया;
इसे लबों से लगाया और सरेआम कर दिया!