एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी;
ऐसा तो कम ही होता है, वो भी हो तनहाई भी!
गुलज़ार

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे;
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे;
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें;
तुम्हें भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे!

लोग कहते है दिल पत्थर है मेरा;
इसलिए इसे पिघलना नही आता!
अब क्या कहूँ क्या आता है, क्या नही आता;
बस मुझे मौसम की तरह, बदलना नही आता!

बदलना आता नहीं हम को मौसमों की तरह,
हर एक रूप में तेरा इंतज़ार करते हैं!
न तुम समेट सकोगी जिसे कयामत तक,
कसम तुम्हारी तुम्हें इतना प्यार करते हैं!

मौसम को देखो कितना हसीन है!
ठंडी हवाये और भीगी ज़मीन है!
याद आ रही है आपकी कुछ बाते!
आप भी याद कर रहे होंगे इतना यकीन है!

End of content

No more pages to load