न जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर,
सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर देखना अच्छा लगता है।

बड़े गुस्ताख़ हैं झुक कर तेरा मुँह चूम लेते हैं,
बहुत सा तू ने ज़ालिम गेसुओं को सर चढ़ाया है।

हुस्न का क्या काम है सच्ची मोहब्बत में यारो,
जब आँख मजनू हो तो लैला हसीन ही लगती है।

हुस्न वालों को क्या जरूरत है संवरने की,
वो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं।

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तिरछी नज़रों से न देखो आशिक़-ए-दिल-गीर को,
कैसे तीर-अंदाज़ हो सीधा तो कर लो तीर को।

सरक गया जब उसके रुख से पर्दा अचानक,
फ़रिश्ते भी कहने लगे काश हम भी इंसान होते।

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उनको सोते हुए देखा था दमे-सुबह कभी,
क्या बताऊं जो इन आंखों ने समां देखा था।

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हटा कर ज़ुल्फ़ चेहरे से ना छत पर शाम को आना,
कहीं कोई ईद ही ना कर ले अभी रमज़ान बाकी है।

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एक ख़्वाब ने आँखें खोली हैं, क्या मोड़ आया है कहानी में,
वो भीग रही है बारिश में, और आग लगी है पानी में।

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सुर्ख आँखों से जब वो देखते हैं,
हम घबराकर आँखें झुका लेते हैं,
क्यों मिलायें उन आँखों से आँखें,
सुना है वो आँखों से ही अपना बना लेते हैं।

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