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मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनी;
न जाने हुस्न क्यों इतरा रहा है!

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एक हसीन आँख के इशारे पर;
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं!

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सो देख कर तेरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया;
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी!

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वो चेहरा किताबी रहा सामने;
बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई!

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आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब;
वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है!

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साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम';
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई!

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बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले;
कोई देखे इस वक़्त चेहरा तुम्हारा!

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कौन बदन से आगे देखे औरत को;
सब की आँखें गिरवी हैं इस नगरी में!

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अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया;
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया!

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क्यों न अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे इतराती हवा;
फूल जैसे एक बदन को छू कर आई थी हवा!