शहर में हमदम पुराने बहुत थे नासिर;
वक़्त पड़ने पर मेरे काम ना आया कोई।

मेरी मौत के सबब आप बने;
इस दिल के रब आप बने;
पहले मिसाल थे वफ़ा की;
जाने यूँ बेवफ़ा कब आप बने।

अब के अब तस्लीम कर ले तु, नहीं तो मैं सही;
कौन मानेगा कि हम में से बेवफा कोई नहीं।

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हुनर अब आ गया मुझको​ ​वफाओं को परखने का;
​ दिखावे की हर एक चाहत मैं वापिस मोड़ देता हूँ​। ​

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एक तेरी खातिर परेशाँ हूँ मैं;
टूटे दिलों की जुबाँ हूँ मैं;
तूने ठुकराया जिसको अपनाकर;
उसी दीवाने का गुमां हूँ मैं।

खुदा तू ही बता हमारा क्या होगा;
उजड़े हुए दिल का सहारा क्या होगा;
घबराहट होती है मोहब्बत की नाव में बैठ कर;
गर मझदार ये तो किनारा क्या होगा।

खुदा खुशियां भी देगा तो उनको;
जिनके अपनाए थे कभी गम हमने।

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ऐ दिल थोड़ी सी हिम्मत कर ना यार:
दोनों मिल कर उसे भूल जाते है।

जिस पर हम मर मिटे, उसने हमें मिटा दिया;
वाह! क्या खूब उसने मोहब्बत का सिला दिया।

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उसने महबूब ही तो बदला है फिर ताज्जुब कैसा;
दुआ कबूल ना हो तो लोग खुदा तक बदल लेते है!

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