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​कहाँ से ​लाऊ हुनर उसे मनाने का​;​
कोई जवाब नहीं था उसके रूठ जाने का​;​
मोहब्बत में सजा मुझे ही मिलनी थी​;​
क्यूंकी जुर्म मैंने किया ​था ​उससे दिल लगाने का​।

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​मेरा ख़याल ज़ेहन से मिटा भी न सकोगे​;
​एक बार जो तुम मेरे गम से मिलोगे​;​
​तो सारी उम्र मुस्करा न सकोगे​।

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वफाओं ​की बातें की हमने जफ़ाओं के सामने​;​
​ ले चले हम चिराग़ हवाओं के सामने​;​
​ उठे हैं जब भी हाथ बदली हैं क़िस्मतें​;
​ मजबूर है ​खुदा भी दुआओं के सामने​। ​ ​

​​ठुकरा के उसने मुझे कहा ​कि मुस्कुराओ;
मैं हंस दिया सवाल उसकी ख़ुशी का था;
मैंने खोया वो जो मेरा था ​ही नहीं;
उसने खोया वो जो सिर्फ उसी का था।

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दिल किसी से तब ही लगाना;
जब दिलों को पढ़ना सीख लो;
वरना हर एक चेहरे की फितरत में;
ईमानदारी नहीं होती।

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मत बहा आंसुओं में जिंदगी को;
एक नए जीवन का आगाज़ कऱ;
दिखानी है अगर दुश्मनी की हद तो;
ज़िक्र भी मत कर, नज़र अंदाज़ कर।

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मेरी नाराज़गी पर हक़ मेरे अहबाब का है बस;
भला दुश्मन से भी कोई कभी नाराज़ होता है।

रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी घर उसके;
रोज उस के कूचे में इक काम निकल आता है।

वो आई मेरे मज़ार पर;
अपने महबूब के साथ;
कौन कहता है कि;
मरने के बाद जलाया नहीं जाता।

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वो बात ही कुछ अजीब थी;
वो हमसे रूठ गयी, जो दिल के सबसे करीब थी;
उसने तोड़ दिया दिल हमारा;
और लोग कहते है वो लड़की बहुत सरीफ थी |

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