ना पूछ मेरे सब्र की इंतहा कहाँ तक है;
तू सितम कर ले, तेरी हसरत जहाँ तक है;
वफ़ा की उम्मीद, जिन्हें होगी उन्हें होगी;
हमें तो देखना है, तू बेवफ़ा कहाँ तक है।

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शायरी नहीं आती मुझे बस हाले दिल सुना रही हूँ;
बेवफ़ाई का इलज़ाम है, मुझपर फिर भी गुनगुना रही हूँ;
क़त्ल करने वाले ने कातिल भी हमें ही बना दिया;
खफ़ा नहीं उससे फिर भी मैं बस, उसका दामन बचा रही हूँ।

अगर दुनिया में जीने की चाहत ना होती;
तो खुदा ने मोहब्बत बनाई ना होती;
लोग मरने की आरज़ू ना करते;
अगर मोहब्बत में बेवाफ़ाई ना होती!

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जानकार भी तुम मुझे जान ना पाए;
आजतक तुम मुझे पहचान ना पाए;
खुद ही की है बेवाफाई तुमने;
ताकि तुम पर इल्ज़ाम ना आए!

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मत पूछ मेरे सब्र की इन्तेहा कहाँ तक है;
तु सितम कर ले, तेरी ताक़त जहाँ तक है;
व़फा की उम्मीद जिन्हें होगी, उन्हें होगी;
हमें तो देखना है, तू ज़ालिम कहाँ तक है!

वो जिसे समझती थी ज़िन्दगी, मेरी धड्कनों का फरेब था;
मुझे मुस्कुराना सिखा के, वो मेरी रूह तक रुला गयी!

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ये संगदिलों की दुनिया है, ज़रा संभल के चलना 'दोस्त';
यहाँ पलकों पे बिठाया जाता है, नज़रों से गिराने के लिये!

अगर मोहब्बत नही थी तो बता दिया होता;
तेरे एक चुप ने मेरी ज़िन्दगी तबाह कर दी!

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धोखा दिया था जब तुमने मुझे तब दिल से मैं नाराज था;
फिर सोचा कि दिल से तुम्हें निकाल दूँ, मगर वह कमबख्त दिल भी तुम्हारे पास था!

हमने तेरे बाद न रखी किसी से मोहब्बत की आस;
एक शक्स ही बहुत था जो सब कुछ सिखा गया!

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