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अपने मन में डूब कर पा जा सु्राग़-ए-ज़िन्दगी;
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन, अपना तो बन!

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बदल गए सब लोग आहिस्ता-आहिस्ता;
अब तो अपना भी हक़ बनता है!

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दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है;
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया!

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तुझ को खबर नहीं मगर इक सादा-लौह को;
बर्बाद कर दिया तेरे दो दिन के प्यार ने।

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कैसे कह दूं कि बदले में कुछ नहीं मिला;
सबक भी कोई छोटी चीज तो नहीं।

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आँख में आँख डालकर बात तो करके देखता;
इतना भी एतमाद उसे अपनी निगाह पर नहीं।

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ना करना हमसे प्यार का फिर झुठा वादा;
माँगी है आज दुआ के तुझे भूल जायें हम!

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वो खेलती है मुझसे मुझे भी ये पता है;
पर उसके हाथ का खिलौना होने में भी एक मज़ा है!

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बेवफा लोग बढ़ रहे हैं धीरे धीरे;
इक शहर अब इनका भी होना चाहिए!

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गलतफ़हमी की गुंजाईश नहीं सच्ची मोहब्बत में;
जहाँ किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है!