पलको के किनारे हमने भिगोए ही नहीं;
वो सोचते है हम रोए ही नहीं;
वो पूछते है ख्वाब में किसे देखते हो;
हम है कि एक उम्र से सोए ही नहीं।
और ज्यादा भड़काते हो तुम तो आग मोहब्बत की;
सोजिश-ए-दिल को ऐ अश्को, क्या ख़ाक बुझाना सीखे हो।

क्या मिला प्यार में अपनी ज़िंदगी के लिए;
रोज़ आँसू ही पिए हैं मैंने किसी के लिए;
वो गैरों में खुशियां मनाते रहे;
और हमे अपनी ही हँसी के लिए तड़पाते रहे।

कौन रोकेगा अब इन बहती हुई आँखों को;
क्योंकि रुलाना तो पुरानी आदत है ज़माने की;
एक ही शख्स था जो थाम लेता था हमको;
पर अब उसे भी आदत हो गयी है आज़माने की।
कभी उसको हमारी यादों ने सताया होगा;
चेहरा हमारा आँखों से आँसुओं ने मिटाया होगा;
ग़म ये नहीं कि वो भूल गए होंगे हमको;
ग़म ये है कि बहुत रो-रो कर भुलाया होगा।
माना कि प्यार किसी का मेरे पास नहीं;
मगर तुम्हें मेरी मोहबबत का एहसास नहीं;
जाने पी गए हम कितने ग़म-ए-आंसू;
अब कुछ और पाने की प्यास नहीं।

मोहब्बत के भी कुछ अंदाज़ होते हैं;
जागती आँखों के भी कुछ ख्वाब होते हैं;
जरुरी नहीं कि गम में ही आँसू निकलें;
मुस्कुराती आँखों में भी सैलाब होते हैं।

इस दिल ने अब प्यार करना छोड़ दिया;
जिस दिन से तुमने ये दिल तोड़ दिया;
अब तो रो भी नहीं सकते अपनी बेबसी पे;
इस लिए इन आँखों ने अब रोना भी छोड़ दिया।
जान-ए-तनहा पे गुज़र जायें हज़ारों सदमें;
आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं।
इन को 'नासिर' न कभी आँख से गिरने देना;
उन को लगते हैं मेरी आँख में प्यारे आँसू।