बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे;
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे!
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब';
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था!
आज फ़िर उसकी याद आ गई;
जब पान वाले ने पूछा कितना चूना लगाऊं!
याद उसे करो जो इंसान अच्छा हो,
प्यार उसे करो जो इंसान सच्चा हो;
साथ उसका दो जो इंसान इरादे का पक्का हो,
और दिल उसको दो जो सूरत से नहीं दिल से अच्छा हो!
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़,
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो..!
हमें मिटाना तो आसान है, बहुत आसान;
इसी मुग़ालते में कितने लोग मारे गए..!
अब अपने लहज़े में नरमी बहुत ज्यादा है,
नए बरस में नई जंग का इरादा है!
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन;
सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर!
*मुख़ालिफ़: विरोधी
*शय: चीज़
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप;
और ये रात अपनी चादर है!
*पैरहन: पहनने के कपड़े
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है;
बुत भी रखे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं,
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है!
*बुत: मूर्तियों
*अदा: चुकाना