फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना;
मगर इस में लगती है मेहनत ज़्यादा!
कौन कहे मासूम हमारा बचपन था;
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था!
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय;
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है!
यूँ जो तकता है आसमान को तू;
कोई रहता है आसमान में क्या!
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है;
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी!
*तुर्बत: क़ब्र
जाने कितने बे-क़ुसूरों को सज़ाएँ मिल रहीं;
झूठ लगता है तुम्हें तो जेल जा कर देखिए!
रात भी नींद भी कहानी भी;
हाए क्या चीज़ है जवानी भी!
ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है;
बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे!
अंजाम को पहुँचूंगा मैं अंजाम से पहले;
ख़ुद मेरी कहानी भी सुनाएगा कोई और!
ख़ुश्बू को फैलने का बहुत शौंक है मगर;
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किए बग़ैर!



