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हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन;
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है!

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कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन,
कोई तस्वीर गाती रही रात भर;
फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले,
कोई किस्सा सुनाती रही रात भर!

*पैरहन: वस्त्र
*सबा: सुबह की हवा

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एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो;
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में,
कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो!

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हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार;
एक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है!

*हिज्र: जुदाई
*वस्ल: मिलन
*दरकार: आवश्यकता

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गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर';
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना!

*गाहे: कभी

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भीड़ तन्हाइयों का मेला है;
आदमी आदमी अकेला है!

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मिट्टी ख़राब है तेरे कूचे में वर्ना हम;
अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे!

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दोनों तेरी जुस्तुजू में फिरते हैं दर दर तबाह;
दैर हिन्दू छोड़ कर काबा मुसलमाँ छोड़ कर!

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सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो,
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो;
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं,
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो!

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क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो;
ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो।