दुनिया तो चाहती है यूँ ही फ़ासले रहें; दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल!
जिस ने कुछ एहसान किया एक बोझ सिर पर रख दिया; सिर से तिनका क्या उतारा सिर पे छप्पर रख दिया!
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता; अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है!
मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी; बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला!
एक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए; जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए!
आता है जो तूफ़ान आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है; मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए!
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं, यही होता है ख़ानदान में क्या; अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं, हम ग़रीबों की आन-बान में क्या!
मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'; मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है!
रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें; जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया!
तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था, न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था; वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं, ये काम किस ने किया है ये काम किस का था!