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चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती;
उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है!

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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता;
तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो,
जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता!

*मुकम्मल: उत्तम, पूर्ण
*ख़ुलूस: निष्कपटता, निश्छलता

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गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले,
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले;
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो,
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले!

*बहर-ए-ख़ुदा: ईश्वर के लिए
*क़फ़स: पिंजरा, क़ैदख़ाना
*सबा: हवा, सुबह की हवा

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सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो;
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो!

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आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समंदर नहीं देखा;
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे,
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा!

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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं,
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं;
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से,
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं!

*रब्त: लगाव
*ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब है

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परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ,
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ;
हँसो और हँसते हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में,
हमीं पे रात भारी है सितारो तुम तो सो जाओ!

*सुकूत-ए-मर्ग: मौत की चुप्पी
*ख़लाओं: आकाश

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चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना;
हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे!

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मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले;
हँसी आ रही है तेरी सादगी पर!

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प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर;
भागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर!