कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती;
मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती;
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब',
शर्म तुम को मगर नहीं आती!
तू नहीं तो तिरा ख़याल सही;
कोई तो हम-ख़याल है मेरा!
महीने फिर वही होंगे सुना है साल बदलेगा!
परिंदे फिर वही होंगे शिकारी जाल बदलेगा!!
वही हाकिम, वही ग़ुरबत, वही कातिल, वही गाज़िब!
न जाने कितने सालों में मुल्क का हाल बदलेगा!!
राह देखेंगे तेरी चाहे ज़माने लग जाएँ;
या तो आ जाए तू या हम ही ठिकाने लग जाएँ..!
ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया;
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया!
ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ; तू आ के जा भी चुका है मैं इंतज़ार में हूँ!
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो; साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो!
किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें; है वस्ल से ज़्यादा मज़ा इंतज़ार का! *वस्ल: मिलन
कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस; मैं मय-कदे में तेरा इंतज़ार कर लूँगा! *मय-कदे: शराब पीने का स्थान, मदिरालय
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया; फिर उठ खड़ा हुआ वही रोग इंतज़ार का! *वादा-ए-वस्ल: मिलने का वादा