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वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर';
कि मेरे बाद सितारे कहेंगे अफ़्साने!

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मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे;
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे!

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नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम;
ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी,
कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम!

*बरपा: होना

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अब तो चुप-चाप शाम आती है;
पहले चिड़ियों के शोर होते थे!

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जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए;
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया!

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उस गली ने ये सुन के सब्र किया;
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं!

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क्यों चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो;
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो!

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आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम;
उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में!

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खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही;
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है!

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वस्ल में रंग उड़ गया मेरा;
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा!

*वस्ल: मिलन