वही आँखों में और आँखों से पोशिदा भी रहता है,
मेरी यादों में एक भूला हुआ चेहरा भी रहता है;

जब उस की सर्द-मेहरी देखता हूँ बुझने लगता हूँ,
मुझे अपनी अदाकारी का अंदाज़ा भी रहता है;

मैं उन से भी मिला करता हूँ जिन से दिल नहीं मिलता,
मगर ख़ुद से बिछड़ जाने का अंदेशा भी रहता है;

जो मुमकिन हो तो पुर-असरार दुनियाओं में दाख़िल हो,
कि हर दीवार में एक चोर दरवाज़ा भी रहता है;

बस अपनी बे-बसी की सातवीं मंज़िल में ज़िंदा हूँ,
यहाँ पर आग भी रहती है और नौहा भी रहता है।

अजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में था,
वो बात करते हुए भी नई उड़ान में था;

हवा भरी हुई फिरती थी अब के साहिल पर,
कुछ ऐसा हौसला कश्ती के बादबाँ में था;

हमारे भीगे हुए पर नहीं खुले वर्ना,
हमें बुलाता सितारा तो आसमान में था;

उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का,
अजीब शहद सा कल रात उस ज़बान में था;

खुली तो आँख तो 'ताबिश' कमाल ये देखा,
वो मेरी रूह में था और मैं मकान में था।

उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में,
वो कुछ ज़ियादा ही याद आता है सर्दियों में;

मुझे इजाज़त नहीं है उस को पुकारने की,
जो गूँजता है लहू में सीने की धड़कनों में;

वो बचपना जो उदास राहों में खो गया था,
मैं ढूँढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में;

उसे दिलासे तो दे रहा हूँ मगर से सच है,
कहीं कोई ख़ौफ़ बढ़ रहा है तसल्लियों में;

तुम अपनी पोरों से जाने क्या लिख गए थे जानाँ,
चराग़ रौशन हैं अब भी मेरी हथेलियों में;

हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं,
तुम्हारे ग़म के चराग़ मेरी उदासियों में।

कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के;
वो बदल गए अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के;

हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा;
मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के;

तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है;
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के;

कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा;
जो चिराग़ बुझ गए हैं, तेरी अंजुमन में जल के;

मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो;
वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के;

तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला;
ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले संभल के।

महक उठा है आँगन...

महक उठा है आँगन इस ख़बर से;
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से;

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम;
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे;

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था;
उतारे कौन अब दीवार पर से;

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की;
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से;

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद;
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे;

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान;
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से।

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है;
यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है;

इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;
के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है;

ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा;
मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल;

है जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर;
अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है;

हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया;
लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको,
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको;

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने,
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको;

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन,
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको;

बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील',
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

निकले हम कहाँ से और किधर निकले;
हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले;

तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात;
तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले;

बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार;
जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले;

अब संभले के चले 'ज़हर' और सफ़र की सोच;
ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले;

तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता;
पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।

प्यार करने की यह इस दिल को सज़ा दी जाए;
उसकी तस्वीर सरे-आम लगा दी जाए;

ख़त में इस बार उसे भेजिये सूखा पत्ता;
और उस पत्ते पे इक आँख बना दी जाए;

इतनी पी जाए कि मिट जाए मन-ओ-तू की तमीज़;
यानि ये होश की दीवार गिरा दी जाए;

आज हर शय का असर लगता है उल्टा यारो;
आज `शहज़ाद' को जीने की दुआ दी जाए।

आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती;
यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती;

अब उम्र, ना मौसम, ना रास्‍ते के वो पत्‍ते;
इस दिल की मगर ख़ाम ख्‍़याली नहीं जाती;

माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ;
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती;

मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से;
पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती;

हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में
अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती;

हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी;
तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती।

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