खुद पे वार के फेंके हैं ऐसे-वैसे बहुत;
मेरा गुरुर सलामत रहे तेरे जैसे बहुत ..!!

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं;
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं!

हमें मिटाना तो आसान है, बहुत आसान;
इसी मुग़ालते में कितने लोग मारे गए..!

उसको चाहा भी तो इज़हार ना करना आया;
कट गई उम्र हमे प्यार न करना आया!
उसने माँगा भी तो हमसे जुदाई मांगी;
और हम थे कि हमें इंकार ना करना आया..!!

तू नहीं तो तिरा ख़याल सही;
कोई तो हम-ख़याल है मेरा!

ना रख इश्क में इम्तेहान मैं अनपढ़ हूँ;
तेरी याद के सिवा मुझे कुछ नही आता..!

महीने फिर वही होंगे सुना है साल बदलेगा!
परिंदे फिर वही होंगे शिकारी जाल बदलेगा!!
वही हाकिम, वही ग़ुरबत, वही कातिल, वही गाज़िब!
न जाने कितने सालों में मुल्क का हाल बदलेगा!!

कितने दिलों को तोड़ती है कम्बख़्त फरवरी,
यूँ ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए हैं!

ये कफ़न ये कब्र ये जनाज़े रस्म-ऐ-शरियत है इक़बाल;
मर तो इन्सान तभी जाता है जब कोई याद करने वाला ना हो!

तुम्हें हम भी सताने पर उतर आए तो क्या होगा,
तुम्हारा दिल दुखाने पर उतर आए तो क्या होगा।
हमें बदनाम करते फ़िर रहे हो अपनी महफ़िल में,
अगर हम सच बताने पर उतर आए तो क्या होगा।।

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