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हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब;
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे!

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दिल है क़दमों पर किसी के सिर झुका हो या न हो;
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो!

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तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी;
तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे!

* तल्ख़ी-ए-मय: bitterness of the wine

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ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था;
हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते!

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ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को;
अपने अंदाज़ से गँवाने का!

*फ़न: कला

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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी;
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी!

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हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन;
उनके बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते!

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न तुम होश में हो न हम होश में हैं;
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी!

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इश्क़ में कौन बता सकता है;
किस ने किस से सच बोला है!

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वफ़ा करेंगे निभायेंगे बात मानेंगे;
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था!

कलाम: बात, बातें

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