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उस के होंठों पे रख के होंठ अपने;
बात ही हम तमाम कर रहे हैं!

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अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ;
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं!

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मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का इल्म नहीं;
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं!

* ख़िज़ाँ: पतझड़

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यूँ ही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना;
तेरी याद तो बन गई एक बहाना!

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अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में;
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में!

* मयस्सर: Available

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इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई;
हम न सोए रात थक कर सो गई!

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इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा;
आदमी काम का नहीं होता!

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सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है;
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं!

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तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं;
जान बहुत शर्मिंदा हैं!

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मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे;
कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए!

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