इतना सच बोल कि होंठों का तबस्सुम न बुझे;
रौशनी ख़त्म न कर आगेअँधेरा होगा!
* तबस्सुम: मुस्कुराहट, मुस्कान
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास;
मेरे ही सीने में उतरे हैं ये ख़ंजर सारे!
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं;
हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं!
किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी;
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी!
यही हालात इब्तिदा से रहे;
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे!
* इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत।
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है;
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है!
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया;
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया!
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर;
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ!
एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के;
एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है!
आज देखा है तुझ को देर के बाद;
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं!



