नुक्स निकालते हैं लोग इस कदर हम में;
जैसे उन्हें खुदा चाहिए था और हम इंसान निकले..!
मशरूफ रहने का अंदाज तुम्हे तन्हा ना कर दे ग़ालिब,
रिश्ते फुर्सत के नहीं, तवज्जो के मोहताज होते हैं...!!
लोगों ने कहा धोखेबाज़ है वो, हमे लोग गलत लगे;
वो सही लगी, बाकि सारे सितम गलत लगे|
सातों जन्म के वादे थे उसके, हमने भी सच माना;
हमसे कोई अच्छा मिला, तो उसे हम गलत लगे|
कोई लम्हा हो तेरे साथ का, जो मेरी उम्र भर को समेट दे; मैं फ़ना बक़ा के सभी सफ़र, उसी एक पल में गुज़ार दूँ!
तन्हाई में फ़रयाद तो कर सकता हूँ;
वीराने को आबाद तो कर सकता हूँ|
मैं जब चाहूँ आपसे मिल नही सकता;
पर जब चाहूँ आपको याद तो कर सकता हूँ|
अपने चहरे के किसे दाग नज़र आते हैं;
वक्त हर शख्स को आईना दिखा देता है!
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा;
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख!
दिल के लुट जाने का इज़हार जरूरी तो नहीं,
ये तमाशा सर-ए-बाज़ार जरूरी तो नहीं;
मुझे था इश्क़ तेरी रूह से और अब भी है,
जिस्म से हो कोई सरोकार जरूरी तो नही;
मैं तुझे टूट कर चाहूँ ये तो मेरी फ़ितरत है,
तू भी हो मेरा तलबगार जरूरी तो नहीं;
ऐ सितमगर जरा झाँक जरा मेरी आँखों में,
जुबां से हो प्यार का इज़हार जरूरी तो नहीं!
अब अपने लहज़े में नरमी बहुत ज्यादा है,
नए बरस में नई जंग का इरादा है!
एक सुकून की तलाश में जाने कितनी बेचैनियाँ पाल ली,
और लोग कहते हैं की हम बड़े हो गए हमने ज़िंदगी संभाल ली!