मुन्तज़िर हूँ तेरी आवाज़ से तस्वीर तलक;
एक वक़्फ़ा ही तो दरकार था मिलने के लिए!
ऐ ख़ुदा कैसा समय आया है;
शहर में हर सू धुआँ छाया है!
*सू - दिशा, तरफ
मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही;
इस सफ़र में आरज़ूओं का लहू करती रही!
खोया खोया उदास सा होगा;
तुम से वो शख़्स जब मिला होगा!
जहाँ उन को उन के इशारों को देखा;
वहीं दिल की साज़िश के मारों को देखा!
आँधियाँ गम की चली और कर्ब-बादल छा गए;
तुझ से कैसे हो मिलन सब रास्ते धुँदला गए!
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है जिंदा रहिए;
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है!
सफर का शौक न मंजिल की जुस्तुजू बाक़ी;
मुसाफिरों के बदन में नहीं लहू बाक़ी!
ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ताबीर में है;
मुझ को मालूम है जो कुछ मेरी तक़दीर में है!
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और;
बढ़ जाएगी शायद मेरी तन्हाई ज़रा और!



