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अब चल पड़ा हूँ आखिरी अपने सफ़र को मैं;
अच्छा है सीधा कर लूँ जो अपनी कमर को मैं!

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मुमकिन नहीं है अपने को रुसवा वफ़ा करे;
दुनिया-ए-बे-सबात की ख़ातिर दुआ करे!

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मुझे दिल कि ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता;
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता!

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दयार-ए-शौक में आए थे एक ख़्वाब के साथ;
गुजर रही है मुसलसल किसी अजाब के साथ!

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न पाक होगा कभी हुस्न ओ इश्क़ का झगड़ा;
वो क़िस्सा है ये कि जिस का कोई गवाह नहीं!

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अगर मैं सच कहूँ तो सब्र ही की आज़माइश है;
ये मिट्टी इम्तिहाँ प्यारे ये पानी आज़माइश है!

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क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं;
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं!

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किसे बताएँ कि ज़ाद-ए-सफ़र गया कब का;
रहा ही क्या है ग़म-ए-मो'तबर गया कब का!

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दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो;
इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो!

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ये किस ने तुम से ग़लत कहा मुझे कारवाँ की तलाश है;
जहाँ मैं हूँ तुम हो कोई न हो मुझे इस जहाँ की तलाश है!

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