मन में सींचो हर हर नाम अंदर कीर्तन होर गुण गाम,
ऐसी प्रीत करो मन मेरे आठ पहर प्रभ जानो नेहरे,
कहो गुरु जी का निर्मल बाग हर चरणी ता का मन लाग,
नानक नीच कहे विचार वारिआ ना जावा एक वार,
जो तुद भावे साई भली कार तू सदा सलामत निरंकार।
गुरुपुरब की हार्दिक बधाई!
एहा संधिआ परवाणु है जितु हरि प्रभु मेरा चिति आवै ॥
हरि सिउ प्रीति ऊपजै माइआ मोहु जलावै ॥
गुर परसादी दुबिधा मरै मनूआ असथिरु संधिआ करे वीचारु ॥
नानक संधिआ करै मनमुखी जीउ न टिकै मरि जमै होइ खुआरु ॥१॥
गुरुपुरब की हार्दिक बधाई!
प्रिउ प्रिउ करती सभु जगु फिरी मेरी पिआस न जाइ॥
नानक सतिगुरि मिलिऐ मेरी पिआस गई पिरु पाइआ घरि आइ॥२॥
गुरपुरब की शुभ कामनायें!
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
नमसकारु गुरदेव को सति नामु जिसु मंत्र सुणाइआ।
भवजल विचों कढि कै मुकति पदारथि माहि समाइआ।
जनम मरण भउ कटिआ संसा रोगु वियोगु मिटाइआ।
संसा इहु संसारु है जनम मरन विचि दुखु सवाइआ।
जम दंडु सिरौं न उतरै साकति दुरजन जनमु गवाइआ।
चरन गहे गुरदेव दे सति सबदु दे मुकति कराइआ।
भाउ भगति गुरपुरबि करि नामु दानु इसनानु द्रिड़ाइआ।
जेहा बीउ तेहा फलु पाइआ ॥१॥
गुरु नानक देव जी प्रकाश पुरब की आप सब को बधाई!
गुरमुखि धिआवहि सि अम्रित पावहि सेई सूचे होही ॥
अहिनिसि नाम जपह रे प्राणी मैले हछे होही ॥३॥
जेही रुति काइआ सुख तेहा तेहो जेही देही ॥
नानक रुति सुहावी साई बिन नावै रुति केही ॥४॥१॥
जो गुरमुख ध्यान करते हैं, दिव्य अमृत पाते हैं वो पूरी तरह शुद्ध हो जाते हैं,
दिन रात प्रभु का नाम जपो तो तुम्हारी आत्मा भी शुद्ध हो जाती है,
जैसी यह ऋतु है वैसे ही हमारा शरीर अपने आप को ढाल लेता है,
नानक कह रहे हैं कि जिस ऋतु में प्रभु का नाम नहीं उस ऋतु का कोई महत्व नहीं है।
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पुरब की शुभ कामनायें!
तुधनो सेवहि तुझ किआ देवहि मांगहि लेवहि रहहि नही ॥
तू दाता जीआ सभना का जीआ अंदरि जीउ तुही ॥२॥
हे प्रभु जो लोग तुम्हारी सेवा करते हैं वो तुम्हें क्या दे सकते हैं, वो तो खुद तुमसे माँगते हैं;
तुम सभी आत्माओं के महान दाता हो, सभी जीवित प्राणियों के भीतर जीवन हो।
गुरु नानक देव जी के आगमन पर्व की शुभ कामनायें!
तन महि मैल नाही मन राता ॥
गुर बचनी सच सबदि पछाता ॥
तेरा ताण नाम की वडिआई ॥
नानक रहणा भगति सरणाई ॥४॥१०॥
जिसका मन प्रभु के अभ्यस्त है, उसके शरीर में कोई प्रदूषण नहीं है;
गुरु के शब्द के माध्यम से सच्चे शब्द का एहसास होता है;
सभी शक्तियां तुम्हारे नाम के माध्यम से तुम्हारी हैं;
नानक अपने भक्तों के अभयारण्य में पालन करता है।
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पुरब की शुभ कामनायें!
सरम खंड की बाणी रूपु ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥
विनम्रता के दायरे में, शब्द सौंदर्य है;
अतुलनीय सौंदर्य के प्रपत्र वहाँ विचारों के हैं;
जिसको वर्णित नहीं किया जा सकता;
जो इसे वर्णित करना चाहे वो पछतायेगा;
मन की सहज चेतना, बुद्धि और समझ वहाँ आकार लेते हैं;
आध्यात्मिक योद्धाओं और सिद्ध, की आध्यात्मिक पूर्णता चेतना वहां आकार लेती है।
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पुरब की शुभ कामनायें!
सलोकु मरदाना १॥
कलि कलवाली कामु मदु मनूआ पीवणहारु ॥
क्रोध कटोरी मोहि भरी पीलावा अहंकारु ॥
मजलस कूड़े लब की पी पी होइ खुआरु ॥
करणी लाहणि सतु गुड़ु सचु सरा करि सारु ॥
गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु ॥
गुरमुखि पाईऐ नानका खाधै जाहि बिकार ॥१॥
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व की बधाई!
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
नमसकारु गुरदेव को सति नामु जिसु मंत्र सुणाइआ।
भवजल विचों कढि कै मुकति पदारथि माहि समाइआ।
जनम मरण भउ कटिआ संसा रोगु वियोगु मिटाइआ।
संसा इहु संसारु है जनम मरन विचि दुखु सवाइआ।
जम दंडु सिरौं न उतरै साकति दुरजन जनमु गवाइआ।
चरन गहे गुरदेव दे सति सबदु दे मुकति कराइआ।
भाउ भगति गुरपुरबि करि नामु दानु इसनानु द्रिड़ाइआ।
जेहा बीउ तेहा फलु पाइआ॥१॥
गुरु नानक देव जी प्रकाश पुरब की बधाई!