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काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था;
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था;
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में;
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।

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सबके कर्ज़े चुका दूँ मरने से पहले, ऐसी मेरी नीयत है;
मौत से पहले तू भी बता दे ज़िंदगी, तेरी क्या कीमत है।

उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह;
मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए।

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लम्हों की खुली किताब हैं ज़िन्दगी;
ख्यालों और सांसों का हिसाब हैं ज़िन्दगी;
कुछ ज़रूरतें पूरी, कुछ ख्वाहिशें अधूरी;
इन्ही सवालों के जवाब हैं ज़िन्दगी।

सो सुख पा कर भी सुखी न हो;
पर एक ग़म का दुःख मनाता है;
तभी तो कैसी करामात है कुदरत की;
लाश तो तैर जाती है पानी में;
पर ज़िंदा आदमी डूब जाता है!

चाहा है तुझ को तेरी तग़ाफ़ुल के बावजूद;
ए ज़िन्दगी तू याद करेगी कभी हमें!

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सफ़र ज़िन्दगी का बहुत ही हसीन है;
सभी को किसी न किसी की तालाश है;
किसी के पास मंज़िल है तो राह नहीं;
और किसी के पास राह है तो मंज़िल नहीं।

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तुने तो रुला के रख दिया ए-जिन्दगी​;
जा कर पूछ मेरी माँ से ​ कितने लाडले थे हम...

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​अपनी ही तरह से परेशान है हर कोई;
इस तपती धूंप के लिए कोई दरख़्त नहीं है;
किसी के पास खाने के लिये रोटी नहीं है;
और किसी के पास रोटी खाने का वक़्त नहीं है...

इन कमबख्त़​ ​जरूर​तो और चाहतों ने मार डाला;​​
​कभी ​जरूरतें पूरी नही होती​ तो ​कभी चाह​तें​ बिखर जाती है;​​
​कभी चाहतें ​के पीछे भागो तो कभी ​जरूरतों पूरी करों;​
बस ​इसी में ​तालमेल बिठाते-बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है।

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