लाख तलवारे बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ;
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाए कैसे।
मुश्किल में भाग जाना आसान होता है;
हर पहलु जिंदगी का इम्तिहान होता है;
डरने वाले को कुछ नहीं मिलता और;
लड़ने वाले के क़दमों में जहान होता है।
साहिल पे पहुंचने से इनकार किसे है लेकिन;
तूफ़ान से लड़ने का मज़ा ही कुछ और है;
कहते है, कि किस्मत खुदा लिखता है लेकिन;
उसे मिटा के खुद गढ़ने का मजा ही कुछ और है।
रोया है बहुत तब जरा करार मिला है;
इस जहाँ में किसे भला सच्चा प्यार मिला है;
गुजर रही है जिंदगी इम्तिहान के दौर से;
एक ख़तम तो दूसरा तैयार मिला है।
दुनिया सलूक करती है हलवाई की तरह;
तुम भी उतारे जाओगे मलाई की तरह।
जो तेरा है, वो कभी कही भी नहीं जाएगा;
जो तेरा नहीं है, तु उसे कभी नहीं पाएगा;
नेक नीयत रख अपनी तु सदा बन्दे;
एक दिन खुदा भी चलकर तेरे पास आएगा।
उस फलक के तीर का क्या निशाना था;
जहाँ थी मेरी मंजिल वहीँ तेरा आशियाना था;
बस पहुंच ही रही थी कश्ती साहिल पे;
इस तूफ़ान को भी अभी आना था।
ज़िंदगी की हर एक उड़ान बाकी है;
हर मोड़ पर एक इम्तिहान बाकी है;
अभी तो सिर्फ़ आप ही परेशान है मुझसे;
अभी तो पूरा हिन्दुस्तान बाकी है।
तेरी नेकी का लिबास ही तेरा बदन ढकेगा, ऐ बंदे;
सुना है ऊपर वाले के घर, कपड़ों की दुकान नहीं होती।
जीना चाहता हूँ मगर जिंदगी रास नहीं आती;
मरना चाहता हूँ मगर मौत पास नहीं आती;
उदास हूँ इस जिंदगी से इसलिए क्योंकि;
उसकी यादें तडपाने से बाज नहीं आती।



