राह में निकले थे ये सोचकर, किसी को बना लेंगे अपना;
मगर इस ख्वाहिश ने, जिंदगी भर का मुसाफिर बना दिया।
ये भी अच्छा है कि ये सिर्फ़ सुनता है;
दिल अगर बोलता तो क़यामत हो जाती।
अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी का;
सकून ढूढनें चले थे, नींद ही गवा बैठे!
ना वो मिलती है, ना मैं रुकता हूँ;
पता नहीं रास्ता गलत है, या मंजिल!
ठोकरें खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब;
राह के पत्थर तो अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं!
हजारों झोपड़िया जलकर राख होती हैं;
तब जाकर एक महल बनता है!
आशिको के मरने पर कफ़न भी नहीं मिलता;
हसीनाओं के मरने पर "ताज महल" बनता है!
ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी!
फर्क तो रंगों का है!
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर;
और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर!!!
तकदीरें बदल जाती हैं, जब ज़िन्दगी का कोई मकसद हो;
वर्ना ज़िन्दगी कट ही जाती है 'तकदीर' को इल्ज़ाम देते देते!
मेरी इबादतों को ऐसे कबूल कर ऐ, मेरे खुदा;
कि सजदे में मैं झुकूं और मुझसे जुड़े हर रिश्ते की ज़िन्दगी संवर जाये!
बिना गम के ख़ुशी का पता कैसे चलेगा;
बिना रोंए हुए, हंसी का मज़ा कैसे मिलेगा;
जो उसे करता हैं, उसे वही जानता है;
अगर हम जान गए तो, उसे खुदा कौन कहेगा!



