
हुए ज़लील तो इज़्ज़त की जुस्तुजू क्या है;
किया जो इश्क़ तो फिर पास-ए-आबरू क्या है!

फिर से तेरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए;
लो फिर विसाल-ए-यार के लम्हे जवाँ हुए!
*नुक़ूश: रेखाएँ
*अयाँ: स्पष्ट, प्रत्यक्ष

दिल पे जज़्बों का राज है साहब;
इश्क़ अपना मिज़ाज है साहब!

लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!

उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम;
ख़ुद-ब-ख़ुद अपने से हमदम आप घबराते हैं हम!

जब मोहब्बत का किसी शय पे असर हो जाए;
एक वीरान मकाँ बोलता घर हो जाए!

जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो;
ये राज़-ए-मोहब्बत है प्यारे तुम राज़-ए-मोहब्बत क्या जानो!

धूप रुख़्सत हुई शाम आई सितारा चमका;
गर्द जब बैठ गई नाम तुम्हारा चमका!

इकरार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन;
हो जाएगी अब आप से तकरार किसी दिन!

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए;
हम नज़र तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए!