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बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं;
कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं!

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एक उमर बीत चली है तुझे चाहते हुए;
तू आज भी बेखबर है कल की तरह!

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फूल खिलते हैं बहारों का समा होता है,
ऐसे मौसम में ही तो प्यार जवां होता है,
दिल की बातों को होठों से नहीं कहते,
ये फ़साना तो निगाहों से बयाँ होता है!

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होठों को दबाकर जब धीरे से मुस्कुराती हो;
मेरी जान तुम दिल के जर्रे-जर्रे में छा जाती हो!

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उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं है;
ये दिल उसका है अपना होता तो और बात होती!

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सामने बैठे रहो दिल को करार आएगा;
जितना देखेंगे तुम्हें उतना ही प्यार आएगा!

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दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे;
उस ने भेजा है इक गुलाब मुझे!

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गज़ब की आशिकी है तेरी इन निगाहो में;
जब भी देखती है डूबने को मजबूर कर देती है!

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मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख;
रस्ते में छाँव पा के मुसाफ़िर ठहर न जाए!

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निगाहों से कत्ल कर दे न हो तकलीफ दोनों को;
तुझे खंजर उठाने की मुझे गर्दन झुकाने की!

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