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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी;
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी!

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इश्क़ में कौन बता सकता है;
किस ने किस से सच बोला है!

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दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे;
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे!

*रंज: दुख

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क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है;
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है!

*हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह

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हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं;
ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे!

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आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो;
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो!

* महताब: चाँद

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हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं;
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं!

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इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा;
आदमी काम का नहीं होता!

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मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर;
वो जो दीवानगी की थी है अभी!

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ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह;
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं!

*मआज़-अल्लाह: in the protection of God, at the mercy of God

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